बीमारी को ठीक करने के लिए जो दवा दी जाती है उसका असर मरीज पर तभी हो पाता है जब वो उसके प्रति सकारात्मक प्रक्रिया रखता है। इसका खुलासा हाल ही में हुए एक नए अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने लगाया है।
यदि किसी मरीज को लगता है कि दवा काम नहीं कर रही है या ठीक से काम नहीं कर नहीं है, तो ऐसी दशा में मरीज के लिए असुविधा या फिर अधिक दर्द का कारण बन सकती है। अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि जब मरीज एक गोली के लाभों के बारे में आशावादी होता है, तो असुविधा और दर्द दोनों कम होने लगते हैं।
इसके संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिकों ने 22 ऐसे लोगों को शामिल किया जिनकों गर्मी में पैरों दर्द की शिकायत थी। जिनमें दर्द के कम होने को 100 अंकों में इंगित किया गया। उनमें से 66 प्रतिशत दर्द कम तब हो गया जब दर्द निवारक दवा मरीज को बिना बताये दी गई।
इसके बाद 55 प्रतिशत दर्द तुरंत उन लोगों का ठीक हुआ जिनको दर्द निवारक दवा के बारे में बताया गया था। लेकिन उन लोगों में 100 में से 39 प्रतिशत ही ठीक हो पाये जिनकों दवा तो वहीं दी गई थी लेकिन उनकों दवा के बारे में बताया गया था कि यह दर्द निवारक नहीं है।
इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि दवा का असर उन लोगों पर अधिक पड़ता है जिन लोगों को दवा के असर के बारे में पता था या फिर वो दवा के प्रति आशावादी थे। इसके संबंध में शोधकर्ता इरेन ट्रेसी कहते हैं कि दवा का रोग पर असर करना और नहीं करना मरीज के मस्तिष्क की क्रियाओं पर निर्भर करता है।